Monday, August 30, 2010

ख़ामोशी .......

राह तकते है यूँ ही पलके बिछाये
जाने किस घड़ी वो सामने से आये

दिन कटते नहीं यूँ खामोश से
                     गुप-चुप करते है बातें, रातों से                                      

वो फलक पर चमकता सितारा कुछ बोला
नज़रों का इशारा वो क्या समझा

छम-सा रह गया वो मंज़र
पलक झपकते ही वो सामने से आये

ठहर जाते  है  वो पल
एक उम्मीद करते है हर पल

अब जाना नहीं
उम्मीद करते है इस पल

काली चादर की आड़ में
                         पलकों की छाव में                                                 

एक याद बन कर
        रहना हमसफ़र .............

                                                                                                          
  


 Sushmita....

Monday, August 16, 2010

16/08/10

        शाम के 5 :30 बजते ही आसमान में नज़ारा देखते ही बनता है . नीले गगन में बादलों का नारंगी रंग आँखों को खूब भाता है . इतनी देर में एक आवाज़ सुनाई दी किसी के चलने की आवाज़ ... कोई सीढियो से चल कर छत पर आ रहा था . यह क्या..? आवाज़ बंद हो गयी , देखा तो यह कदम नंगे पाँव आगे बढ़ रहे थे . यह कोई नयी  बात नहीं थी , वो रोज़ शाम होते ही छत पर आती और चप्पले एक कोने पर रख कर या तो छत की आखिरी सीढ़ी पर या फिर एक कुर्सी ले कर खुले आसमान के नीचे बैठ जाती .



   जाने ऐसा क्या था उस छत पर जो वो खिंची चली आती थी या यूँ कहे कि उसकी आदत बन गयी थी . पहले तो वो बस यू ही टहलती रहती थी . पर धीरे-धीरे उसकी इसी आदत में एक और साथी उसका साथ देता था . अब वो अकेली नहीं एक कॉपी और पेन साथ लाती थी . जाने क्या- क्या लिखती रहती थी . कभी कुछ लिखना तो कभी एक ही जगह काफी देर तक खड़े रहना . न जाने ऐसा क्या शौक था उसको ? न तो वो किसी को बताती न पढ़ कर कभी सुनाती बस कुछ वाक्यों को कैद कर पन्नो पर उतार देती . हमेशा कहती उसकी एक दुनिया है जो बहुत ही खुबसूरत है .
        
  

 समय बीतता गया और उन कदमों कि आहट कहीं पीछे ही रह गयी .....







 
 
 
 
 

  Sushmita....