Friday, October 22, 2010

चले उस पार ...



ख़्वाबों को समेटे हुए     
हर पल से गुज़र बैठे.....


 अक्सर ख्यालों में कुछ अजीब दिलकश हमारी सोच पंख लगा कर उड़ान भरने लगती है , यह उड़ान  मीलों दूर की हो या पास की .....क्या फर्क पड़ता है .बस अब तो उड़ान भर चुके , यह डोर कहा तक जाए कुछ पता नहीं . 
जान कर करना भी क्या है , बस इत्मीनान से आँखे मूंदे 
उस ख्वाब की गहराई तक पहुंचना है . 
पहुंचना है उस एहसास तक जिसे महसूस किया पल भर में . 
ज़रा एक कोने में बैठ जाइए और सुनिए अपने मन की आवाज़.
. . .          बहुत कुछ कहना चाहती हूँ ... पर शब्द नहीं मिलते , शब्द मिलते है तो बयान नहीं कर पाती .....  कोशिश है हर पल को खूबसूरती से कैद कर उन्हें शब्दों के सहारे जान डाल दी जाये वो दृश्य जीवित रूप में हम सब के सामने दिखाई दे ताकि हरी-हरी पत्तियों के बीच ये फूल लहरातें दिखाई दे ..
                                                                                      


     बारिश की हर एक-एक बूँद आपको अपनी ओर    आकर्षित करती है , शायद इसलिए क्यूंकि मन कुछ तो कहता है . . . खुले आसमान के नीचे आँखे   बंद कर हाथ फैलाए एक ही जगह पर घूमना , चेहरे पर मुस्कान ले आता है .  शाम के वक़्त हाथ में चाय की प्याली लिए बालकोनी से बाहर का  नज़ारा खूब भाता है .  आपके कुछ अपने पल याद दिलाना चाहती हूँ , ऐसे ही कुछ पल जरुर अपने आप के लिए संभाल कर  रखे क्यूंकि इस पर न तो किसी का कोई हक होता न किसी की रोक-टोक . सिर्फ आपके खुबसूरत पल..... जिसे याद करते वक़्त आप हमेशा खुश रहते है.  

यूँ तो मुस्कुराना हमें भी आता है 
यूँ तो पलों को जीना हमें भी आता है 

शब्दों में कैद कर यहाँ तक पहुंचाना
उन्हें एक जान देना , हमें नहीं आता है .....
 
  

















  Sushmita...

Monday, October 18, 2010

कुछ बातें .....


सफ़र कुछ बातों.. का
यूँ ही  गुज़र ना जाए ,, 

ये  लम्हा समय रथ  पर  सवार
कहीं बीत ना जाए  ..


 एक गुजारिश है
समय से, बस ठहर जाए

आप और हम यूँ ही
कुछ बातें कहते जाए.....




   सोचती हूँ ' कुछ बातें ' .. कुछ ख़ास नहीं , पर फिर भी लगाव है इससे . कुछ अपना है हमेशा से........ 
काफी  दिन बीत गए कुछ कहने का मन ही नहीं हुआ , 2 -4 बातें ही होती है कहने को  . पहले मैंने सोचा अब आगे कुछ नहीं लिखूंगी , पर ऐसा हो ही नहीं सकता क्यूंकि  मुझे खुद ही कुछ अधूरा-अधूरा लगने लगता है . देखिये इस बेंच की ओर

कुछ ऐसा ही लगता है मुझे अपना ब्लॉग ..   नहीं जानती क्यों ?
समय कुछ ख़ास नही रात के 12 :20  बजे है घड़ी में . याद आने लगा है जब पिछली सर्दियों में मैं यूँही रोज़ कुछ लिखती थी और लिखते-लिखते हाथ ठण्ड से बेजान हो जाते . उस समय अच्छा लगता था रोज़ रोज़ कुछ लिखना , बातें करना . . . आज मन नहीं ये ब्लॉग अधूरा ही रहने वाला है ...


उम्मीद करती हूँ आप मेरा ब्लॉग पढ़ कर मेरा हौसला बढ़ाएंगे  ... जिससे   ' kuch baatein.... '  का सफ़र चलता रहे .....

Sushmita...