Wednesday, June 1, 2011

बातें ...

देखा मैंने उसको नन्हे क़दमों से
आगे बढ़ते हुए

बिखरे बाल , सांवला तन
इधर-उधर की चहल-पहल को निहारती नज़रें

न कल का पता न आज का
बस निकल पड़ा सर पर एक पोटली लिए

जाने क्या था उसमें, पर उसकी चाल से
भारी सामान- सा मालूम हुआ

जहाँ उसके हाथों में किताबें
बस्ते का बोझ होना था  कन्धों पर

वहीं जूझ रहा था वो
उस पोटली के बोझ से ,,

सच तो है ,, उसके माथे पर कोई शिकन नहीं
है तो बस इस समय से अज्ञात

जाने क्या थी उसकी मज़बूरी                
या थी किसी और की सज़ा

ये सज़ा नहीं तो और क्या
कभी न कभी तो रूबरू होगा वो बीते अपने इस समय से .............



कभी कभी तो सोचती हूँ ये ज़िन्दगी ही क्या है , पर इस सवाल का कोई सटीक जवाब नहीं . . . फिर बात कहाँ से कहाँ तक पहुँच जाती है , ऐसे में बस मन करता है इस बारे में सोचना ही बेकार है ...

चलते है वापिस ,,,,
  हाँ देखा था एक रोज़ मैंने एक बच्चे को .  राह पर चलते हुए उसने अनजाने में मेरा ध्यान अपनी ओर खींच ही लिया था . वो चलता गया आगे , एक हाथ उसका पोटली सँभालते हुए वहीं दूसरा हाथ आगे पीछे लहराते हुए . कुछ २ मिनट तक का था यह मंज़र .........

बीच में किसी बात का ज़िक्र था वो बात अधूरी रह गयी ,,, चलिए आज नहीं फिर कभी सही ...........


Sushmita.....